विद्याभारती के आयाम

विद्या भारती संस्कृति बोध परियोजना

इसके अंतर्गत तीन कार्यक्रम संचालित होते हैं.-
१. अखिल भारतीय संस्कृत ज्ञान परीक्षा 
यह परीक्षा 1980 से विद्या भारती के कुरुक्षेत्र केंद्र से संचालित की जाती है. इसके माध्यम से छात्रों को भारतीय संस्कृतिधर्मइतिहासपर्वोंतीर्थस्थलोंपवित्र नदियों-पर्वतों एवं राष्ट्रीय महापुरुषों की जानकारी अत्यंत रोचक एवं सहज रूप में प्राप्त हो जाती है. इस योजना का लाभ विद्या भारती के अतिरिक्त अन्य विद्यालयों के छात्रअध्यापकमाता-पिता आदि सर्वसाधारण लोग प्राप्त कर रहे हैं. भारतीय संस्कृति एवं राष्ट्रीय एकता को पुष्पित एवं पल्लवित करने में यह योजना पोषक सिद्ध हो रही है. इस वर्ष 2012 में अखिल भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा में ....................... लाख से अधिक छात्र सम्मिलित हुए हैं. यह संख्या प्रति वर्ष बढ़ रही है.
२. संस्कृत ज्ञान परीक्षा (आचार्यों के लिए) 
आचार्यों हेतु भी संस्कृति ज्ञान परीक्षा प्रवेशिकामध्यमाउत्तमा एवं प्रज्ञा इन चार स्तरों पर आयोजित के जाती है जिससे कि आचार्यों को भी उपर्युक्त विषयों का ज्ञान हो सके. सामान्यतया प्रचलित शिक्षा प्रणाली से निकले हुए युवक अपने धर्मसंस्कृतिइतिहास आदि विषयों के सामान्य ज्ञान में भी शून्य होते हैं. उनके विकास में यह योजना प्रभावी सिद्ध हो रही है.
३. प्रश्न मंच कार्यक्रम 
प्राथमिकमाध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक स्तर के अलग-अलग समूहों के लिए प्रश्न मंच कार्यक्रम राष्ट्रीय स्तर तक आयोजित किया जाता है. यह अत्यंत रोचक कार्यक्रम होता हैजिसके माध्यम से छात्र अपनी पुण्य भूमि भारतइतिहास एवं सांस्कृतिक विषयों का परिचय सहज रूप से प्राप्त कर लेते हैं.
४. निबंध प्रतियोगिता
यह कार्यक्रम अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित किया जाता है. इसका आयोजन प्राथमिकमाध्यमिक एवं उच्च स्तर माध्यमिक स्तर के छात्रों एवं आचार्यों के लिए अलग-अलग होता है. अपने-अपने समूह में प्रथम तीन स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कार दिए जाते ह
ैं. निबंध के विषय भी पुण्य भूमि भारतइतिहासज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र के महापुरुष एवं भारतीय संस्कृति से सम्बंधित होते हैं.


संस्कृति बोध परियोजना
विश्व में प्रत्येक देश अपनी संस्कृति, परम्पराओं, जीवन मूल्यों, ज्ञान-विज्ञान एवं महापुरुषों के अनुभवों को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में भावी पीढ़ी को शिक्षा के माध्यम से सौंपने का प्रयास करता है। भारत की महान् आध्यात्मिक संस्कृति, श्रेष्ठ परम्पराएं, जीवन मूल्य, महापुरुषों के आदर्श जीवन-चरित्र तथा यहाँ का ज्ञान-विज्ञान इस देश की ही नहीं, विश्व की अमूल्य-निधि माने जाते हैं। परन्तु वर्तमान भारतीय शिक्षा पद्धति द्वारा अपनी इस अप्रतिम राष्ट्रीय निधि को भावी पीढ़ी को सौंपना तो दूर रहा, उससे परिचित कराने का कार्य भी नहीं हो पा रहा है। परिणामतः राष्ट्रीय स्वाभिमान-शून्यता एवं विदेशी संस्कृति के अन्धानुकरण की प्रवृत्ति छात्रों में बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। हमारी यह दृढ़ मान्यता है कि यदि हमारे छात्रों को आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के साथ अपनी महान उज्ज्वल संस्कृति, गौरवपूर्ण इतिहास, महापुरुषों के जीवन-चरित्र, श्रेष्ठ राष्ट्रीय परम्पराओं का परिचय कराया जाए तो आज के निराशापूर्ण वातावरण में भी आशा की किरण उत्पन्न होकर विद्यार्थी जगत में अपेक्षित परिवर्तन दिखाई देगा। इस निमित्त विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के द्वारा संचालित मुख्य गतिविधियाँ अग्रलिखित हैं: -


1. संस्कृति बोध परियोजना
o संस्कृति ज्ञान परीक्षा
o संस्कृति ज्ञान प्रश्नमंच
o निबन्ध लेखन प्रतियोगिता (छात्रों की)
o निबन्ध लेखन प्रतियोगिता (आचार्यों की
o आचार्य संस्कृति ज्ञान परीक्षा(प्रवेशिका, मध्यमा, उत्तमा)
o अखिल भारतीय प्रज्ञा परीक्षा

2. चित्र व साहित्य प्रकाशन एवं शैक्षिक सी.डी. आदि का निर्माण।

3. ज्ञान-विज्ञान मेला
विज्ञान प्रदर्शनी, प्रश्न मंच तथा विषय प्रस्तुति (पत्र वाचन) संस्कृति ज्ञान, प्रश्नमंच, विषय प्रस्तुति, वैदिक गणित प्रश्नमंच, पत्र वाचन आदि।

4. विचार गोष्ठियों एवं शोध गोष्ठियों का आयोजन।

5. संगीत केन्द्र, संगीत आचार्य प्रशिक्षण एवं कला पर्व का आयोजन।

6. संवेदनशील एवं उपेक्षित क्षेत्रों में शिक्षा प्रसार के लिए आर्थिक सहायता करना।

7. लेह(लद्दाख) संस्कृति केंद्र का संचालन

शिशु वाटिका (पूर्व प्राथमिक शिक्षा)
भारत में सामान्यता प्राथमिक विद्यालयों में ६ वर्ष की आयु पूर्ण होने पर बालक कक्षा प्रथम में प्रवेश लेकर अपने औपचारिक शिक्षा आरम्भ करता है. वर्ष से वर्ष का उसका समय प्रायः परिवार में ही व्यतीत होता है. प्राचीन काल में भारत में जब परिवार संस्था सांस्कृतिक दृष्टि से सशक्त थी उस समय बालक परिवार के स्नेहपूर्ण वातावरण में रहकर योग्य संस्कार ग्रहण कर विकास करता था. माता ही उसकी प्रथम शिक्षिका होती थी. किन्तु आधुनिक काल में औद्योगिक विकास एवं पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव विशेष रूप से नगरों मेंपरिवारों पर भी हुआ और इसके परिणामस्वरूप वर्ष का होते ही बालक को स्कूल भेजने की आवश्यकता अनुभव होने लगी. नगरों में इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए "मोंटेसरी", "किंडरगार्टन" या नर्सरी स्कूलों के नाम पर विद्यालयों की संख्या बढ़ने लगी. नगरों एवं महानगरों के गली-गली में ये विद्यालय खुल गए और संचालकों के लिए व्यवसाय के रूप में अच्छे धनार्जन करने के साधन बन गए.
मोंटेसरी या किंडरगार्टन के नाम पर चलने वाले इन विद्यालयों में कोमल शिशुओं पर शिक्षा की दृष्टि से घोर अत्याचार होता है. भारी-भारी बस्तों के बोझ ने इनके बचपन को उनसे छीन लिया. अंग्रेजी माध्यम के नाम पर पश्चिमीकरण की प्रक्रिया तीव्र गति से चल रही है. देश के लिए घातक इस परिस्थिति को देखकर विद्या भारती ने पूर्व प्राथमिक शिक्षा की ओर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया. भारतीय संस्कृति एवं स्वदेशी परिवेश के अनुरूप शिशु शिक्षा पद्धति "शिशु वाटिका" का विकास किया. शिशु का शारीरिकमानसिकभावात्मकसामाजिक एवं आध्यात्मिक विकास की अनौपचारिक शिक्षा पद्धति "शिशु वाटिका" के नाम से प्रचलित हुई. अक्षर ज्ञान और अंक ज्ञान के लिए पुस्तकों और कापियों के बोझ से शिशु को मुक्ति प्रदान की गयी. खेलगीतकथा कथनइन्द्रिय विकासभाषा-कौशलविज्ञान अनुभव,रचनात्मक-कार्यमुक्त व्यवसायचित्रकला-हस्तकलादैनन्दिन जीवन व्यवहार आदि के अनौपचारिक कार्यकलापों के माध्यम से "शिशु वाटिका" कक्षाएँ शिशुओं की आनंद भरी किलकारियों से गूंजती हैं और शिशु सहज भाव से शिक्षा और संस्कार प्राप्त कर विकास करते हैं.
विद्या भारती ने शिशुओं के साथ उनके माता-पिता एवं परिवारों को भी प्रशिक्षित एवं संस्कारित करने का कार्यक्रम "शिशु वाटिका" के अंतर्गत अपनाया है. शिशु के समुचित विकास में परिवार विशेष रूप से माता का दायित्व है. इस दायित्व बोध का जागरण एवं हिंदुत्व के संस्कारों से युक्त घाट का वातावरण निर्माण करने का प्रयास देश भर में "शिशु वाटिका" के माध्यम से हो रहा है.

अखिल भारतीय खेलकूद समारोह
विद्या भारती ने प.पू. डॉ. हेडगेवार के जन्म शताब्दी वर्ष 1988-89 से अखिल भारतीय खेलकूद समारोह का आयोजन प्रारम्भ किया है. इस समारोह में बालकिशोरतरुण अर्थात कक्षा अष्टम तककक्षा दशम तककक्षा द्वादश तक के छात्र-छात्राएँ अलग-अलग समूहों में भाग लेते हैं. कबड्डीखो-खोकुश्तीजूडो,वालीबाल आदि खेलकूद (एथलेटिक्स) के विषय रहते हैं. प्रत्येक खिलाड़ी अधिक से अधिक तीन खेलों में भाग ले सकता है. यह खेलकूद कार्यक्रम विद्यालय स्तर से प्रारम्भ होकर जिलासंभागप्रदेशक्षेत्र एवं अंत में अखिल भारतीय स्तर तक संपन्न होता है. क्षेत्र में विभिन्न खेलों में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले खिलाड़ी छात्र-छात्राएँ ही अखिल भारतीय स्तर पर भाग ले सकते हैं.
इस खेलकूद समारोह में प्रतिभागी छात्र-छात्राएँ विश्व रिकॉर्ड के बराबरी करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. यह विद्या भारती एवं देश के लिए गौरव की बात है. हमारे युवक बलवान हों. युवक-युवतियां बलवान होंगे तो भारत बलवान होगा. बल के साथ संस्कार भी हों - बिना संस्कार के बलशाली विवेकहीन हो जाता है. समाज को उसका लाभ नहीं मिल पाता. संस्कारित बलवान युवक ही राष्ट्र की रक्षा कर सकता है. विद्या भारती इसी ध्येय वाक्य को लेकर खेलकूद समारोह आयोजित करती है. इस खेलकूद समारोह का सबसे आकर्षण एवं प्रभावी स्वरुप यह होता है कि इसमें लघु भारत के दर्शन होते हैं. राष्ट्रीय एकात्मकता का सहजभाव सभी के मन मैं हिलोरे लेने लगता है. एस.जी.एफ़.आई. ने इसे मान्यता प्रदान की है.

पर्यावरण शुद्धि हेतु वृक्षारोपण अभियान
आज विश्व में पर्यावरण प्रदूषण के कारण मानव समाज में भारी चिंता व्याप्त है. सभी देश इस प्रदूषण को रोकने के लिए प्रयत्नशील हैं. विद्या भारती ने भी अपने विद्यालयों में छात्रों द्वारा पर्यावरण शुद्धि हेतु वृक्षारोपण अभियान प्रारंभ किया है. छात्रोंआचार्यों एवं अभिभावकों में इस अभियान के कारण पर्यावरण के प्रति चेतना एवं प्रकृति के प्रति प्रेम का जागरण हो रहा है. उत्तर प्रदेश एवं महाकौशल प्रान्त में इस दिशा में योजनाबद्ध प्रयास हो रहा है. छात्रों द्वारा लाखों की संख्या में वृक्षारोपण प्रतिवर्ष किया जा रहा है. आशा है अन्य प्रदेशों में भी इस दृष्टि से अपेक्षित योजना बनाकर कार्य प्रारंभ हो जायेगा

परिवारों में संस्कारक्षम वातावरण
आचार्यों द्वारा परिवारों में जाकर अभिभावकों से संपर्क स्थापित करना विद्या भारती के विद्यालयों के शिक्षण एवं संस्कार प्रक्रिया का अंग माना जाता है. बालकों को अपनी संस्कृतिधर्म एवं सामाजिक चेतना के जो संस्कार विद्यालय में प्राप्त हो रहे हैं वे उन्हें परिवारों में भी मिलें तभी उनके जीवन का सही विकास संभव होता है. आचार्यों एवं अभिभावकों के निरंतर एवं सजीव संपर्क के कारण परिवारों में संस्कारक्षम वातावरण निर्मित करने में सफलता प्राप्त की है. पुण्यभूमि भारतश्रीराम एवं अन्य महापुरुषों के चित्रहिन्दू तिथि-पंचांग आदि लाखों के संख्या में परिवारों में पहुंचे हैं.
आज परिवारों में विशेष रूप से महानगरों में ईसाईयों के समान पाश्चात्य विधि से बालकों के जन्मदिवस मानाने के प्रथा चल पड़ी है. विद्या भारती ने हिन्दू विधि से जन्म दिवस मनाने सम्बन्धी एक पुस्तिका एवं गीत कैसेट तेयार कराकर छात्रों के घरों में पहुंचाए हैं. इसके कारण घरों में हिंदुत्व का वातावरण निर्मित हुआ है. प्रातः स्मरणएकात्मता स्तोत्र एवं भोजन-मन्त्र नित्य बोलने का प्रचलन भी परिवारों में बढ़ रहा है

पूर्व छात्र परिषदें
अनेक प्रान्तों में विद्या भारती का कार्य कई वर्षों से चलने के कारण अपने विद्यालयों में पढ़े हुए छात्र बड़ी संख्या में समाज में प्रतिष्ठित हो चुके हैं. इन पूर्व छात्रों से सतत संपर्क बना रहेइस उद्देश्य से सभी विद्यालयों में एवं प्रांतीय स्तर पर "पूर्व छात्र परिषदों" का संगठन सक्रिय है. इससे उनके संस्कारों का तो पुनर्जागरण होता ही हैसाथ ही विद्या भारती के अनेक सेवा प्रकल्पों में उनकी व्यक्तिगत तथा आर्थिक रूप में सक्रिय सहभागिता रहती है. उत्तर प्रदेशमध्य प्रदेशआन्ध्र प्रदेश आदि अनेक प्रदेशों में लाखों की संख्या में पूर्व छात्र सक्रिय हैं

संस्कार केंद्र योजना
भारत में ही नहीं अपितु विश्व में यह सबसे बड़ा गैर सरकारी शैक्षणिक संगठन है. इसका कार्य समाज की सहायता के बल पर प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा है. विद्या भारती का कार्य प्रारम्भ से आज कई गुना बढ़ गया है. किन्तु ये सब आंकड़े समाज की शैक्षिक आवश्यकताओं एवं देश की विशालता की तुलना में बहुत कम हैं. विद्या भारती के मानवीय एवं आर्थिक संसाधनों की भी एक सीमा है. वनवासी पिछड़े एवं उपेक्षित क्षेत्रों में विद्यालय निशुल्क चलाने के साथ-साथ छात्रों के भोजनवस्त्रपुस्तकों आदि की भी संस्था की ओर से व्यवस्था करनी होती है क्योंकि उन क्षेत्रों में निर्धनता एवं अभावग्रस्त समाज को दो समय पेट भरकर भोजन भी नहीं मिलता. फिर वे अपने बच्चों की शिक्षा के लिए व्यय कहाँ से कर सकते हैं.
देश और समाज की इस अवस्था में और विद्या भारती अपने सीमित साधनों के कारण अधिक विद्यालय स्थापित करने में असमर्थ है. अतः विद्या भारती ने संस्कार केंद्र जिनको सरकारी प्रचलित भाषा में एकल शिक्षक विद्यालय कहा जाता हैअधिक से अधिक संख्या में खोलने की देशव्यापी योजना बनायी है. इन केन्द्रों पर साक्षरतास्वाध्यायस्वावलंबनसंस्कृतिस्वदेश प्रेम एवं सामाजिक समरसता के अनौपचारिक कार्यक्रम चलते हैं. ऐसे बालक-बालिकाएं जो पारिवारिक विवशतावश अथवा विद्यालयों की समीप में व्यवस्था न होने के कारण शिक्षा से वंचित रह जाते हैं. उन्हें विशेष रूप से इन केन्द्रों पर एकत्रित कर साक्षर करने का प्रयास किया जाता है. जो बालक-बालिकाएं विद्यालय तो जाते हैं किन्तु पारिवारिक परिवेश के कारण शिक्षा में पिछड़ जाते हैं. उन्हें विशेष शिक्षण की व्यवस्था कर उनको अपनी कक्षा के स्तर के योग्य बनाया जाता है. गीतकहानीखेलअभिनय आदि के क्रियाकलापों के माध्यम से इन्हें संस्कारित एवं विकसित किया जाता है. विद्या भारती के संस्कार केंद्र चार प्रकार के क्षेत्रों में चलाये जाते हैं.
१. नगरों की उपेक्षित बस्तियों अर्थात झुग्गी-झोंपड़ियों में.
२. नगरों में कान्वेंट या अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के बालक-बालिकाओं के लिए. ये बालक-बालिकाएं भी भारतीय संस्कृति एवं स्वधर्म के संस्कारों से हीन अर्द्ध-विकसित रहते हैं. अभिजात्य वर्ग के ये बालक-बालिकाएं प्रायः समाज के लिए अभिशाप के रूप में सिद्ध हो रहे हैं. अतः विद्या भारती ने इनके लिए संस्कार केन्द्रों की व्यवस्था की है.
३. ग्रामीण क्षेत्रों में.
४. वनवासी क्षेत्रों में.
इन संस्कार केन्द्रों पर बालक-बालिकाओं के लिए शिक्षा और संस्कारों की व्यवस्था रहती ही है. साथ ही इनके माता-पिता एवं परिवारजनों में भी अनौपचारिक एवं संपर्क कार्यकर्मों के माध्यम से स्वस्थसुसंस्कृत,व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन की चेतना जागृत की जाती है. संस्कार केन्द्रों की यह अभिनव योजना पू. डॉ. हेडगेवार जी की जन्मशताब्दी 1988-89 के अवसर पर विशेष अभियान लेकर आरम्भ की गयी. विद्या भारती ने अपने विद्यालयों से आग्रह किया है कि प्रत्येक विद्यालय कम से कम एक संस्कार केंद्र अवश्य चलाए. आशा है संस्कार केंद्र योजना समाज और सेवावृत्ति कार्यकर्ताओं के सहयोग से अवश्य सफल होगी

आचार्य प्रशिक्षण कार्यक्रम
देशभर में आचार्यों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन सतत किया जाता है. पूर्णकालिक आचार्यों के प्रशिक्षण के लिए आदर्श विद्या मंदिर स्नातकोत्तर शिक्षा महाविद्यालय जयपुरराजस्थान में है. जहाँ विद्या भारती के आचार्यों का निर्माण हो रहा है. इसी प्रकार का एक शिक्षा महाविद्यालय अहमदनगर (महाराष्ट्र) में है.
इसके अतिरिक्त आचार्यों के लिए 10 प्रशिक्षण विद्यालय विभिन्न प्रदेशों में चल रहे हैं.
वनवासी क्षेत्रों के आचार्यों के लिए प्रशिक्षण का प्रबंध रांचीबिहार में है.
इन केन्द्रों के अतिरिक्त आचार्यों के प्रशिक्षण एवं विकास हेतु प्रदेश एवं क्षेत्र के अनुसार "आचार्य प्रशिक्षण वर्ग" आयोजित किये जाते हैं जो दस दिन से लेकर दो माह के अवधि के होते हैं. प्रशिक्षित आचार्य ही विद्या भारती के कार्य की प्रगति के आधार हैं.

विद्या भारती प्रकाशन
१. "विद्या भारती प्रदीपिका" त्रैमासिक पत्रिकादिल्ली से प्रकाशित होती है.
२. "देवपुत्र" मासिक पत्रिका बाल-किशोर छात्रों के लिए इंदौर से प्रकाशित होती है.
३. "भारतीय शिक्षा शोध पत्रिका" लखनऊ से प्रकाशित होती है.
इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक एवं संस्कृति ज्ञान परीक्षा सम्बन्धी पुस्तकें कुरुक्षेत्र से प्रकाशित होती हैं.

विद्या भारती शिक्षण तकनीकी विभाग
वर्तमान युग में विज्ञान और तकनीकी का असीमित विकास हुआ है और हो रहा है. शिक्षा एक जीवंत संस्कार प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक/आचार्य की भूमिका महत्वपूर्ण है. उसका स्थान यंत्र नहीं ले सकता. फिर भी शिक्षण सहायक सामग्री के रूप में आधुनिक विज्ञान-तकनीकी का उपयोग करने की दिशा में विद्या भारती प्रयत्नशील है. दृश्य-श्रव्य शिक्षण सामग्री के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जा रहा है. श्रव्य-ध्वनि मुद्रिकाएँ तैयार कराई गई हैं. जिनका अनेक विषयों के शिक्षण में उपयोग होता है. एक कैसेट्स एवं फिल्म लाइब्रेरी भी कुरुक्षेत्र में स्थापित की गयी है. इस शिक्षण तकनीकी विभाग के विकास की अनेक योजनायें विचाराधीन हैं. 

आवासीय विद्यालय
विद्या भारती से सम्बद्ध आवासीय विद्यालय इस समय देशभर में चल रहे हैं. लगभग हर प्रान्त में एक आदर्श आवासीय विद्यालय की स्थापना हो चुकी है. इन आवासीय विद्यालयों में बालक चौबीस घंटे रहता है. प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में जागरण से रात्रि दस बजे तक आदर्श दिनचर्या का पालन करते हुए वे शिक्षण और सद्संस्कारों के वातावरण में विकास करते हैं. ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में उच्च स्तर तो प्राप्त करते ही हैंसाथ ही भारतीय संस्कृतिधर्म एवं राष्ट्र भक्ति आदि जीवन मूल्यों से उनका जीवन पुष्पित एवं पल्लवित होकर सद्गुणों से सुगन्धित होता रहता है. दिनभर में इस समय 66 आवासीय विद्यालय हैं. 

भारतीय शिक्षा शोध संस्थान
आचार्यों के द्वारा शिक्षण में नए-नए प्रयोग एवं शोध (रिसर्च) करने के लिएजबलपुरउज्जैनजयपुर,चंडीगढ़मेरठ और वाराणसी में शोध केंद्र खोले गए हैं. भारतीय शिक्षा शोध संस्थानलखनऊ में स्थित है. जहाँ से "भारतीय शिक्षा शोध पत्रिका" का प्रकाशन नियमित रूप से होता है. यह पत्रिका विशेष रूप से आचार्यों के लिए प्रेरणादायक एवं लाभप्रद है. शोध कार्य का मुख्य क्षेत्र शिक्षण पद्धतिभारतीय शिक्षा मनोविज्ञानअभिवृत्तियों का मापनपरीक्षण एवं उपलब्धियों का मूल्यांकन आदि करना है

विद्या भारती राष्ट्रीय विद्वत परिषद्
राष्ट्रीयक्षेत्रीय एवं प्रदेश स्तर पर विद्या भारती की विद्वत परिषदें गठित हैं. देश के विख्यात शिक्षाविदों एवं शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को इन परिषदों में मानसेवी सदस्यों के रूप में रखा गया है. समय-समय पर आवश्यकतानुसार राष्ट्रीयक्षेत्रीय एवं प्रदेश स्तर पर गोष्ठियां एवं सम्मेलन आयोजित किये जाते हैं. विद्या भारती को इन विशेषज्ञों एवं विद्वानों का परामर्श एवं मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता है जिसके कारण कार्य को गति प्राप्त होती है.
कार्य योजना :
१. भारतीय संस्कृति एवं जीवनादर्शों के अनुरूप शिक्षा दर्शन विकसित करना जिससे अनुप्राणित होकर शिक्षा के लिए समर्पित कार्यकर्ता राष्ट्र की पुनर्निर्माण के पावन लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में विश्वासपूर्वक बढ़ सकें.
२. शिक्षा का ऐसा स्वरुप विकसित करना जिसके माध्यम से भारत के अमूल्य आध्यामिक निधिपरम सत्य के अनुसन्धान में पूर्व पुरुषों के अनुभव एवं गौरवशाली परम्पराओं की राष्ट्रीय थाती को वर्तमान पीढ़ी को सौंपा जा सके और उसके समृद्धि में वह अपना योगदान करने में समर्थ हो सके.
३. विश्व के आधुनिकतम ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीकी उपलब्धियों का पूर्ण उपयोग करते हुए ऐसी शिक्षण प्रणाली एवं संसाधनों को विकसित करना है जिससे छात्रों के सर्वांगीण विकास के शैक्षिक उद्देश्यों एवं लक्ष्यों के प्राप्ति सुलभ हो सके.
४. शारीरिकयोग एवं आध्यात्मिकसंगीत तथा संस्कृत शिक्षा के राष्ट्रीय पाठ्यक्रमोंसहपाठ्य क्रियाकलापों एवं अनौपचारिक शिक्षा के आयोजनों से छात्रों में राष्ट्रीय एकताचरित्रिक एवं सांस्कृतिक विकास को सुदृढ़ करना.
५. शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यक्रमों को विभिन्न स्तरों पर व्यापक एवं प्रभावी रूप से संचालित करना जिससे कुशलचरित्रवान एवं समर्पित शिक्षकों का निर्माण हो सके.
६. आधारभूत एवं व्यावहारिक अनुसन्धान एवं विकास के कार्यक्रमों का सञ्चालन एवं निर्देशन करना तथा भारतीय मनोविज्ञान को शिक्षण प्रक्रिया का आधार बनाने हेतु कार्य करना.
७. उपर्युक्त उद्देश्यों से अनुप्राणित देश में चल रहे शिक्षा संस्थानों को सम्बद्ध करना तथा उनका मार्गदर्शन करना. विशेष रूप से ग्रामीणजनजातीय एवं उपेक्षित क्षेत्रों में कार्य विस्तार करना तथा इन क्षेत्रों में दिशा-दर्शी प्रकल्प स्थापित करना.
८. विद्या भारती राष्ट्रीय विद्वत्त परिषद् के माध्यम से राष्ट्रीय एवं प्रदेश स्तर की शैक्षिक संगोष्ठियां एवं परिचर्चाएं आयोजित करना तथा शिक्षाविदों एवं विचारकों का सहयोग एवं परामर्श प्राप्त करना.
९. भारत सरकार की राष्ट्रीय शैक्षिक योजनाओं एवं कार्यक्रमों में आवश्यक सहयोग एवं परामर्श प्रदान करना.
१०. देश-विदेश में चल रहे शैक्षिक प्रयोगों एवं अनुभवों के आदान-प्रदान के माध्यम के रूप में कार्य करना एवं उनसे सक्रिय संपर्क स्थापित करना. 

उपेक्षित बस्तियों (झुग्गी-झोपड़ियों) में विद्या भारती का कार्य
भारत में झुग्गी-झोपड़ियों में कई करोड़ जनसँख्या निवास करती है. अधिकतर ये बस्तियां रेलवे लाइन तथा कल-कारखानों के आस-पास पड़ी खुली भूमि पर बस गयी हैं. हमारे इस समाज के बंधुओं के परिवार के 8-10 लोग एक छोटी सी झोंपड़ी में गुजर करते हैं. उसी में सोते और खाना पकाते हैं. शौचालय एवं स्नान एवं पीने के लिए पानी की भी समस्या रहती है. इसीलिये किसी ने ऐसी बस्तियों को "संसार के बड़े-बड़े कमोट कहा है." नारकीय जीवन व्यतीत करने वाले इन लोगों के बच्चे शिक्षा और संस्कारों से तो वंचित रहते ही हैं.
विद्या भारती ने अपने इन बांधवों की बस्तियों में शिक्षा एवं संस्कार प्रदान करने की ओर ध्यान केन्द्रित किया है. अपने विद्यालयों से आग्रह किया जा रहा है कि प्रत्येक विद्यालय एक उपेक्षित बस्ती को गोद लेकर वहां "संस्कार केंद्र" (सिंगल टीचर स्कूल) खोले. विद्यालय और संस्कार केंद्र में प्रेम और आत्मीयता का सम्बन्ध स्थापित करें. पू. डॉ. हेडगेवार जी की जन्मशताब्दी के अवसर पर विद्या भारती ने "संस्कार केंद्र" खोलने के लिए विशेष अभियान लिया. इस समय 3679 संस्कार केंद्र इन बस्तियों में चल रहे हैं. स्वामी विवेकानंद के शब्दों में "नर सेवा नारायण सेवा है." इस भावना को विद्या भारती के विद्यालयों में व्यावहारिक रूप प्रदान किया जा रहा है. शिक्षा एवं संस्कारों के साथ-साथ ये संस्कार केंद्र सामाजिक समरसतास्वास्थ्यस्वावलंबनसंस्कृति एवं स्वदेश प्रेम की भावना के जागरण का कार्य अपने इन उपेक्षित बस्तियों में निवास कर रहे समाज मेंकर रहे हैं.
विद्या भारती ने यह प्रयास भी किया है कि बड़े नगरों में तीन-चार विद्या मंदिर मिलाकर एक पूर्ण विद्यालय इन उपेक्षित बस्तियों में चलायें और मिलकर विद्यालय का पूरा व्यय वहां करें. इस प्रकार के अनेक विद्यालय भी इन उपेक्षित बस्तियों में चल रहे हैं. समाज से इनके लिए आर्थिक सहयोग भी प्राप्त हो रहा है. इन बस्तियों के निवासियों में तथा शेष समाज में भी सामाजिक समरसता तथा हिंदुत्व के भाव का जागरण हो रहा है. विद्या भारती ने मुख्य रूप से नवीन पीढ़ी में अपने इन समाज बांधवों के प्रति दायित्व-बोध के जागरण का संकल्प लिया है. इसमें हमें सफलता भी प्राप्त हो रही है.